Tuesday, December 3, 2019

राहुल बजाज: 'बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर' में 'डर' की कितनी जगह

'लोग (उद्योगपति) आपसे (मोदी सरकार) डरते हैं. जब यूपीए-2 की सरकार थी, तो हम किसी की भी आलोचना कर सकते थे. पर अब हमें यह विश्वास नहीं है कि अगर हम खुले तौर पर आलोचना करें तो आप इसे पसंद करेंगे.'
भारत के कुछ नामी उद्योगपतियों में से एक और बजाज समूह के प्रमुख राहुल बजाज गृहमंत्री अमित शाह के सामने सार्वजनिक रूप से यह बात कहने की वजह से चर्चा में हैं.
सोशल मीडिया पर 81 वर्षीय राहुल बजाज के बारे में काफ़ी कुछ लिखा जा रहा है. एक तरफ वो लोग हैं जो उनकी प्रशंसा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि एक उद्योगपति ने सरकार के ख़िलाफ़ बोलने की हिम्मत दिखाई और हक़ीक़त को सबके सामने ला दिया है.
जबकि दूसरी ओर वो लोग हैं जो उनके बयान को राजनीति से प्रेरित मान रहे हैं और बजाज को 'कांग्रेस-प्रेमी' बता रहे हैं.
सोशल मीडिया पर राहुल बजाज के कुछ वीडियो भी शेयर किये जा रहे हैं जिनमें वो जवाहर लाल नेहरू को अपना पसंदीदा प्रधानमंत्री बताते हैं और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ़ करते दिखाई देते हैं.
लेकिन दक्षिणपंथी विचारधारा वाली बीजेपी सरकार
जून 1938 में जन्मे राहुल बजाज भारत के उन चुनिंदा औद्योगिक घरानों में से एक परिवार से वास्ता रखते हैं जिनकी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से काफ़ी घनिष्ठता रही.
उनके दादा जमनालाल बजाज ने 1920 के दशक में 20 से अधिक कंपनियों वाले 'बजाज कंपनी समूह' की स्थापना की थी. सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार राजस्थान के मारवाड़ी समुदाय से आने वाले जमनालाल को उनके किसी दूर के रिश्तेदार ने गोद लिया था. ये परिवार महाराष्ट्र के वर्धा में रहता था, इसलिए वर्धा से ही जमनालाल ने अपने व्यापार को चलाया और बढ़ाया. बाद में वो महात्मा गांधी के संपर्क में आये और उनके आश्रम के लिए जमनालाल बजाज ने ज़मीन भी दान की.
जमनालाल बजाज के पाँच बच्चे थे. कमलनयन उनके सबसे बड़े पुत्र थे. फिर तीन बहनों के बाद राम कृष्ण बजाज उनके छोटे बेटे थे.
राहुल बजाज कमलनयन बजाज के बड़े पुत्र हैं और राहुल के दोनों बेटे, राजीव और संजीव, मौजूदा समय में बजाज ग्रुप की कुछ बड़ी कंपनियों को संभालते हैं. कुछ अन्य कंपनियों को राहुल बजाज के छोटे भाई और उनके चचेरे भाई संभालते हैं.
बजाज परिवार को क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि जमनालाल को महात्मा गांधी का 'पाँचवा पुत्र' भी कहा जाता था. इसी वजह से नेहरू भी जमनालाल का सम्मान करते थे.
के जो समर्थक इन वीडियो के आधार पर राहुल बजाज को कांग्रेस का 'चापलूस' बता रहे हैं, वो ये भूल रहे हैं कि बीजेपी, एनसीपी और शिवसेना के समर्थन से ही वर्ष 2006 में राहुल बजाज निर्दलीय के तौर पर राज्यसभा मेंबर चुने गए थे. बजाज ने अविनाश पांडे को सौ से अधिक वोटों से हराकर संसद में अपनी सीट हासिल की थी और अविनाश पांडे कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे.
गांधी परिवार और बजाज परिवार के बीच नज़दीकियों को समझाने के लिए एक किस्सा कई बार सुनाया जाता है.
ये चर्चित किस्सा यूँ है कि जब राहुल बजाज का जन्म हुआ तो इंदिरा गांधी कांग्रेस नेता कमलनयन बजाज (राहुल के पिता) के घर पहुँची और उनकी पत्नी से शिक़ायत की कि उन्होंने उनकी एक क़ीमती चीज़ ले ली है. ये था नाम 'राहुल' जो जवाहर लाल नेहरू को बहुत पसंद था और उन्होंने इसे इंदिरा के बेटे के लिए सोच रखा था. लेकिन नेहरू ने यह नाम अपने सामने जन्मे कमलनयन बजाज के बेटे को दे दिया. कहा जाता है कि बाद में इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी के बेटे का नाम राहुल इसी वजह से रखा था कि ये नाम उनके पिता को बहुत पसंद था.
बहरहाल, 1920 के दशक में जिनके 'स्वतंत्रता-सेनानी' दादा ने पूरे परिवार समेत खादी अपनाने के लिए विदेशी कपड़ों को आग लगा दी, उनका पोता कैसे आज़ाद भारत में पूंजीवाद के चर्चित चेहरों में से एक बन पाया! ये कहानी भी दिलचस्प है.
जिस समय राहुल बजाज ने देश की आर्थिक स्थिति को लेकर उद्योगपतियों की चिंताओं और उनके कथित भय पर टिप्पणी की तो अमित शाह ने उसके जवाब में कहा था
अपने पिता कमलनयन बजाज की तरह राहुल बजाज ने भी विदेश से पढ़ाई की.
दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफ़न कॉलेज से इकोनॉमिक ऑनर्स करने के बाद राहुल बजाज ने क़रीब तीन साल तक बजाज इलेक्ट्रिकल्स कंपनी में ट्रेनिंग की. इसी दौरान उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से वक़ालत की पढ़ाई भी की.
राहुल बजाज ने 60 के दशक में अमरीका के हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल से एमबीए की डिग्री ली थी.
पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1968 में 30 वर्ष की उम्र में जब राहुल बजाज ने 'बजाज ऑटो लिमिटेड' के सीईओ का पद संभाला तो कहा गया कि ये मुक़ाम हासिल करने वाले वो सबसे युवा भारतीय हैं.
उस दौर को याद करते हुए अर्थशास्त्री मोहन गुरुस्वामी कहते हैं, "जब राहुल बजाज के हाथों में कंपनी की कमान आई तब देश में 'लाइसेंस राज' था यानी देश में ऐसी नीतियां लागू थीं जिनके अनुसार बिना सरकार की मर्ज़ी के उद्योगपति कुछ नहीं कर सकते थे. ये व्यापारियों के लिए मुश्किल परिस्थिति थी. उत्पादन की सीमाएं तय थीं. उद्योगपति चाहकर भी माँग के अनुसार पूर्ति नहीं कर सकते थे. उस दौर में ऐसी कहानियाँ चलती थीं कि किसी ने स्कूटर बुक करवाया तो डिलीवरी कई साल बाद मिली."
"यानी जिन परिस्थितियों में अन्य निर्माताओं के लिए काम करना मुश्किल था, उन्हीं परिस्थितियों में बजाज ने कथित तौर पर निरंकुश तरीक़े से उत्पादन किया और ख़ुद को देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक बनाने में सफलता हासिल की."
हालांकि बीते दो दशकों में राहुल बजाज ने जो भी बड़े इंटरव्यू दिए हैं, उनमें 'लाइसेंस राज' को एक ग़लत व्यवस्था बताते हुए उन्होंने उसकी आलोचना ही की है.
वो ये दावा करते आए हैं कि बजाज चेतक (स्कूटर) और फिर बजाज पल्सर (मोटरसाइकिल) जैसे उत्पादों ने बाज़ार में उनके ब्रांड की विश्वसनीयता को बढ़ाया और इसी वजह से कंपनी 1965 में तीन करोड़ के टर्नओवर से 2008 में क़रीब दस हज़ार करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच पाई.
कि 'किसी को डरने की ज़रूरत नहीं है और ना ही कोई डराना चाहता है'.
मगर सवाल है कि क्या बीजेपी के समर्थकों ने राहुल बजाज की आलोचनात्मक टिप्पणी पर 'हल्ला मचाकर' गृहमंत्री की बात को हल्का नहीं कर दिया है?
इसके जवाब में वरिष्ठ पत्रकार टी के अरुण ने कहा, "ये एक नया ट्रेंड बन चुका है. आलोचना के पीछे की भावना नहीं देखी जा रही है, सिर्फ़ उन आवाज़ों के ख़िलाफ़ हंगामा किया जा रहा है. बजाज ने जो टिप्पणी की है, वो इसलिए अहम है क्योंकि किसी ने कुछ बोला तो सही. वरना सीआईआई की बंद कमरे वाली बैठकों में उद्योगपति जो चिताएं बीते कुछ वक़्त से ज़ाहिर कर रहे हैं, उनके बारे में वो खुलकर बात करने से बचते हैं."
टी के अरुण को लगता है कि बजाज का ये बयान किसी एक पार्टी के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि वो पहले भी ऐसे बयान देकर सुर्खियाँ बटोर चुके हैं.

Monday, December 2, 2019

حكاية القس الذي أنفق ما ورثه على شراء كنائس مغلقة ليعيد فتحها

في كل الأحوال، أي حكومة قادمة ستوجه لجنة المخابرات المشتركة للاستمرار في التجسس على النشاط النووي الإيراني. كما سيكون هناك شكوك مستمرة بشأن السجل الحقوقي المتردي لإيران، واعتقال مزدوجي الجنسية مثل نازانين زاغاري-راتكليف.
وتقول الخبيرة وكبيرة الباحثين في الشأن الإيراني بالمجلس الأوروبي للعلاقات الخارجية، إلي غيرانماييه، إن ملف حقوق الإنسان وحده يصعّب على أي حكومة بريطانية تطبيع العلاقات مع إيران. لكنها أشارت إلى أن حكومة كوربن ستكون أكثر توازنا بين الندين الكبيرين في الشرق الأوسط" (السعودية وايران) وأعتقد أنه على المستوى الجيوسياسي، سنشهد على الأقل موقفاً بريطانياً أكثر توازنا فيما يتعلق بالتنافس السعودي-الإيراني الدائر في المنطقة".
أنفق قس بريطاني سابق نحو 200 ألف جنيه استرليني من مدخراته التي ورثها عن والدته على شراء الكنائس المغلقة في ويلز، والتي كانت بصدد التحول إلى شقق سكنية، وأعاد فتحها أمام المصلين.
وخلال السنوات الأخيرة قام القس روبرت ستيفي، البالغ م
وكان القس ستيفي، الذي عمل في كنيسة بشمالي العاصمة الب
وأوضح القس ستيفي أن الأموال التي أنفقها في هذه المهمة كانت مدخرات ورثها عن والدته.
يذكر أن القس ستيفي متزوج وله خمسة أبناء توفي أحدهم وأصيب آخر في حادث مرور كاد أن يودي بحياته.
ويقول القس ستيفي: "كاد يموت في الحادث، وقد صلينا كثيرا إلى جانب فراشه في المستشفى وهو يسير الآن على كرسي متحرك ويساعدني في إدارة الكنائس".

"أمر إيجابي"

ومن جانبه، يقول الدكتور غيثين ماثيوز، كبير المحاضرين في التاريخ بجامعة سوانزي: "منذ عام 1905 بدأ عدد الكنائس في التراجع في ويلز ولم يرتبط ذلك بإغلاق المناجم فحسب بل إن عدداً كبيراً من العائدين من الحرب العالمية الأولى كانوا متشككين في رسالة الكنيسة في ما يتعلق بـ "الحرب العادلة".
ومضى يقول: "ومنذ ذلك الحين تطور المجتمع المعاصر وظهرت أشكال مختلفة من الترفيه وبدأ النظر إلى الكنائس على أنها جامدة وموضة قديمة". قد يبدو ذلك تاريخ ماض ولكن النتيجة واضحة اليوم.
وقد رحب الأب غاريث كومبيس، وهو قس إنجيلي، بخطوات ستيفي قائلا: "إن الكنائس فقدت صلتها بالمجتمع ولم نعد نتوقع إقبال الناس على الكنائس بنفس الطريقة التي كانوا عليها سابقا، فالأطفال يمارسون الرياضة يوم الأحد، ولذلك فإن وجود من يفتح الباب لاستقبال الناس للصلاة أمر إيجابي".
ريطانية لندن، قد زار قرى منطقة جنوب ويلز حيث لاحظ العدد الكبير من الكنائس التي يتم إغلاقها هناك وتحويلها إلى شقق سكنية أو تسويتها بالأرض.
وقال إن هذه الكنائس التي تغلق لم تكن مراكز دينية فحسب، بل كان لها نفوذ كبير في ما يتعلق بالنواحي الثقافية والتعليمية والحياة السياسية أيضا في المجتمع.
وقرر حينئذ أن يبذل كل ما في طاقته لإنقاذ ما يستطيع إنقاذه منها من هذا المصير وإعادة فتحها أمام الهدف الأصلي الذي أقيمت من أجله.

"إنقاذها من أيدي المستثمرين"

وقال القس ستيفي: "نريد أن نزرع هذه الكنائس في قلب القرى، وأريد إنقاذها من أيدي المستثمرين الذين يريدون تحويلها إلى شقق ومنازل".
وأضاف قائلا: "إن الناس بحاجة إلى رسالة بسيطة عن الحب وكيف مات المسيح من أجلهم".
وأشار إلى أنه قد لا يستطيع إنقاذ كل الكنائس ولكنه يفعل ما في وسعه "وذلك يشعرني كثيرا بالرضا وبالإيجابية تجاه المستقبل".
ن العمر 71 عاما، بشراء 12 كنيسة قديمة مغلقة في قرى جنوب ويلز وكلفته آخرها 40 ألف جنيه استرليني.