जवाब- नोट बंदी मूर्खतापूर्ण और डिजास्टर निर्णय था, इससे हासिल कुछ भी नहीं हुआ। जीएसटी
बहुत पेचीदा और उलझा हुआ मुद्दा है। इसमें कई सारे रेट हैं और इसका
उद्देश्य आंशिक रूप से पूरा नहीं हुआ। लेकिन यह डिजास्टर नहीं है। यह आसान
हो सकता था। नोटबंदी का असर रोजगार पर पड़ा, हालांकि राजनीतिक रूप से नोट
बंदी का फायदा भाजपा को मिला।
सवाल- मोदी सरकार की दो बड़ी कामयाबी और दो असफलताएं बताइए?
जवाब- पहली सफलता यह है कि
प्रधानमंत्री पूरी शक्ति को बिना किसी चेलैंज के अपने पास रखे हुए हैं।
बॉस कौन है इसमें कोई शक नहीं है। बहुत मजबूत शख्स के रूप में मोदी उभरे
हैं। दूसरा, पड़ौसी देशों के साथ बेहतर संबंध सरकार ने बनाए हैं। मोदी ने
पाकिस्तान के साथ भी सार्थक पहल की, पर कोई नतीजा नहीं निकला। दो असफलता
हैं कि संवैधानिक मूल्य और धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंची है। कुछ मंत्री
गलत भाषा बोलते हैं। इतिहास की किताबों को फिर लिखा जा रहा है। नोटबंदी
दूसरी सबसे बड़ी असफलता है।
सवाल- धारणा बन रही है कि जर्नलिस्ट या तो राइटिस्ट है या लेफ्टिस्ट है या एक्टिविस्ट है। वह टीवी पर जज की तरह फैसले सुना रहा
जवाब- पत्रकारों के राइटिस्ट और लेफ्टिस्ट होने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन प्रोपेगेंडा
नहीं करना चाहिए। खबरों में अपने विचार नहीं मिलाना चाहिए। इस दौर में भी
बहुत अच्छे पत्रकार और संस्थान हैं जो अपना कार्य बेहतर तरीके से कर रहे
हैं। कुछ हमारे बीच में ही हीरो हैं- जैसे रवीश कुमार जिनकी खुद की अपनी
आवाज है और भी कई हैं।
जवाब- मुझे लगता है कि
सही-गलत को लेकर बड़े पत्रकारों की खुद की आवाज होती है। स्क्रॉल और वायर के
अलावा भी बहुत बेहतर जर्नलिज्म किया जा रहा है। मीडिया के लिए कोई
इमरजेंसी जैसी स्थिति नहीं है। न्यूज पेपर में यह कम देखने को मिलता है।
ज्यादातर मीडिया अवसरवादी हो गए हैं, सेल्फ सेंसरशिप होना आवश्यक है। चैनल
ब्लॉक करना भी सही नहीं है। हाल ही में हम (विभिन्न मीडिया कर्मी) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से मिले थे और डीटीएच ब्लॉक करने से रोकने का कहा था।
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को व्यभिचार की धारा 497 को खत्म कर दिया। कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार अपराध नहीं है। इसके साथ ही यह भी कहा कि पति, पत्नी का मालिक नहीं है।शीर्ष अदालत आज एक अन्य अहम मुद्दे पर फैसला दे सकता है। इसमें तय किया जाएगा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं?
अयोध्या जमीन विवाद से जुड़ा है नमाज विवाद : मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं इस पर कोर्ट बताएगा कि यह मामला संविधान पीठ को रेफर किया जाए या नहीं। तीन जजों की बेंच ने इस मुद्दे पर 20 जुलाई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है : माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सीधे अयोध्या के जमीन विवाद मामले पर पड़ सकता है। दरअसल, 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है और इसके लिए मस्जिद अहम नहीं है। तब कोर्ट ने कहा था कि सरकार अगर चाहे तो जिस हिस्से पर मस्जिद है उसे अपने कब्जे में ले सकती है।
जमीन विवाद से पहले यह मामला निपटाना जरूरी : मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उस वक्त कोर्ट का फैसला उनके साथ अन्याय था और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमीन बंटवारे के 2010 के फैसले को प्रभावित करने में इसका बड़ा किरदार था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का जमीन बंटवारे के मुख्य मामले में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस मामले को निपटाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने जमीन तीन हिस्सों में बांटने का दिया था फैसला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या की 2.7 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था- एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए। दूसरे हिस्से का मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े को मिले और तीसरा हिस्सा रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को मिले।
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को व्यभिचार की धारा 497 को खत्म कर दिया। कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार अपराध नहीं है। इसके साथ ही यह भी कहा कि पति, पत्नी का मालिक नहीं है।शीर्ष अदालत आज एक अन्य अहम मुद्दे पर फैसला दे सकता है। इसमें तय किया जाएगा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं?
अयोध्या जमीन विवाद से जुड़ा है नमाज विवाद : मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं इस पर कोर्ट बताएगा कि यह मामला संविधान पीठ को रेफर किया जाए या नहीं। तीन जजों की बेंच ने इस मुद्दे पर 20 जुलाई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है : माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सीधे अयोध्या के जमीन विवाद मामले पर पड़ सकता है। दरअसल, 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है और इसके लिए मस्जिद अहम नहीं है। तब कोर्ट ने कहा था कि सरकार अगर चाहे तो जिस हिस्से पर मस्जिद है उसे अपने कब्जे में ले सकती है।
जमीन विवाद से पहले यह मामला निपटाना जरूरी : मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उस वक्त कोर्ट का फैसला उनके साथ अन्याय था और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमीन बंटवारे के 2010 के फैसले को प्रभावित करने में इसका बड़ा किरदार था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का जमीन बंटवारे के मुख्य मामले में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस मामले को निपटाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने जमीन तीन हिस्सों में बांटने का दिया था फैसला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या की 2.7 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था- एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए। दूसरे हिस्से का मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े को मिले और तीसरा हिस्सा रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को मिले।